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भगवान विष्णु का पांचवा अवतार कौन सा है? संकट हरने के लिए श्रीहरि का अनोखा रूप

Vamana Avatar: वामन देव को भगवान विष्णु का पांचवा अवतार कहा जाता है. पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती के मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार में धरती पर जन्म लिया था. वामन देव का अवतार भगवान विष्णु का पांचवा अवतार माना जाता है. इससे पहले भगवान मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह अवतार में जन्म ले चुके हैं. वेद-पुराणों में भगवान विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन मिलता है, जिसमें वामन पांचवा अवतार है. जब-जब सृष्टि पर विपत्ति या संकट आता है, तब-तब श्रीहरि अवतार लेकर इसे दूर करते. भगवान विष्णु का वामन अवतार भी इसी उद्देश्य से हुआ था. भगवान विष्णु के वामन अवतार को लेकर ऐसी मान्यता है कि इंद्र देव को स्वर्ग का राजपाट लौटाने के लिए और अति बलशाली दैत्यराज बलि के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु को वामन अवतार लेना पड़ा था. आइये जानते हैं विष्णु जी के वामन अवतार से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में.

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वामन अवतार कथा

जब श्रीहरि ने मांगी भिक्षा
दैत्यराज बलि बहुत बलशाली था और उसने अपने बल से तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया. राजा बलि भले ही क्रूर था और उसे अपनी शक्ति का बहुत घमंड भी था. लेकिन इसी के साथ वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त भी था और वह खूब दान-पुण्य करता था. इस कारण इंद्र देव की जगह उसे स्वर्ग का स्वामी बना दिया गया. बलि की वजह से सभी देवता बहुत दुखी थे, दुखी देवता माता अदिति के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई.

इसके बाद अदिति ने पति कश्यप ऋषि के कहने पर एक व्रत किया, जिसके शुभ फल से भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में जन्म लिया. वामन देव ने छोटी उम्र में ही दैत्यराज बलि को पराजित कर दिया था, बलि अहंकारी था, उसे लगता था कि वह सबसे बड़ा दानी है. विष्णु जी वामन देव के रूप में उसके पास पहुंचे और दान में तीन पग धरती मांगी. अहंकारी बलि ने सोचा कि ये तो छोटा सा काम है, मेरा तो पूरी धरती पर अधिकार है, मैं इसे तीन पग भूमि दान कर देता हूं.

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जब शुक्राचार्य समझ गये भगवान की लीला
बलि वामन देव को तीन पग भूमि दान देने के लिए संकल्प कर रहे थे, उस समय दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने उसे रोकने की कोशिश की. शुक्राचार्य जी जान गए थे कि वामन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं. शुक्राचार्य जी ने बलि को समझाया कि ये छोटा बच्चा नहीं है, ये स्वयं विष्णु हैं. ये तुमसे तुम्हारा राजपाट लेने आए हैं. तुम इन्हें दान मत दो. ये बात सुनकर बलि ने कहा कि अगर ये भगवान हैं और मेरे द्वार पर दान मांगने आए हैं तो भी मैं इन्हें मना नहीं कर सकता हूँ.

ऐसा कहकर बलि ने हाथ में जल का कमंडल लिया तो शुक्राचार्य छोटा रूप धारण करके कमंडल की दंडी में जाकर बैठ गए ताकि कमंडल से पानी ही बाहर न निकले और राजा बलि संकल्प न ले सके. वामन देव शुक्राचार्य की योजना समझ गए और उन्होंने तुरंत ही एक पतली लकड़ी ली और कमंडल की दंडी में डाल दी, जिससे अंदर बैठे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे तुरंत ही कमंडल से बाहर आ गए. इसके बाद राजा बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया.

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जब बलि से भगवान हुए प्रसन्न
राजा के संकल्प लेने के बाद वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया. इसके बाद उन्होंने राजा से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं? ये सुनकर राजा बलि का अहंकार टूट गया. राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं. बलि की दान वीरता देखकर वामन देव प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया.

Tags: Dharma Aastha, Lord vishnu

FIRST PUBLISHED : September 13, 2024, 07:48 IST News18 India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें

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