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शरद पूर्णिमा की रात भगवान शिव ने क्यों धारण किया गोपी का रूप? पढ़ें धर्म कथा

Sharad Purnima 2024: हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है. यह हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा और कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. मान्यता है कि, शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था, इसलिए इसे रास पूर्णिमा कहा जाता है. वहीं, शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, जिसे कोजागर पूर्णिमा के नाम से जानते हैं. इस रात खुले आसमान के नीचे खीर रखी जाती है, जिसे खाना बहुत शुभ माना जाता हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात ही भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण था. अब सवाल है कि आखिर भगवान शिव को नर से नारी बनने के पीछे की वजह क्या थी? बाद में शिव जी किस नाम से जाने गए? इस रोचक कथा के बारे में News18 को बता रहे हैं प्रताप विहार गाजियाबाद के ज्योतिर्विद और वास्तु विशेषज्ञ राकेश चतुर्वेदी-

शरद पूर्णिमा की रात शिव जी के नर से नारी बनने की कथा

शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण और चंद्रमा के साथ भगवान शिव की भी पूजा का विधान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में गोपियों के साथ रासलीला की थी. उनकी बंसी की मधुर धुन सुनकर सभी गोपियां मंत्रमुग्ध होकर मथुरा से वृंदावन आ गईं थी. कहते हैं कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर देवी-देवता भी मोहित हो जाते थे. शिव जी पौरुष का प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन फिर भी भोलेनाथ महारास को देखने के लिए खुद को रोक नहीं पाए थे. लेकिन जब वे वृंदावन पहुंचे तो उन्हें द्वारपालों ने रोक दिया. उन्होंने कहा कि यह रासलीला केवल गोपियों के लिए है. इसके बाद भगवान शिव जी को एक गोपी का रूप धारण करना पड़ा था. हालांकि, इसके लिए उनका साथ माता पार्वती और यमुना नदी ने भी दिया था.

इस तरह से वृंदावन में विराजमान हुए गोपेश्वर महादेव

श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन पर महादेव घूंघट लेकर नृत्य में शामिल हो गए. वह इतने मस्त होकर नृत्य कर रहे थे कि सारी सुधबुध खो बैठे. श्रीकृष्ण ने भोलेनाथ को पहचान लिया था, उन्होंने मुस्कुराते हुए महादेव को गोपेश्वर नाम से पुकारा. महारास खत्म होने पर कृष्ण ने भोलेनाथ को ब्रज में इसी रूप में विराजमान होने का आग्रह किया. तब से ही शिव जी गोपी के रूप में वृंदावन में निवास करते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार गोपेश्वर महादेव की सबसे पहले राधा-कृष्ण ने पूजा की थी. मान्यता है कि पूजा के दौरान उनके उंगलियों के निशान शिवलिंग पर बन गए थे.

शरद पूर्णिमा 2024 की तिथि और खीर रखने का समय

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल शरद पूर्णिमा के लिए जरूरी अश्विन शुक्ल पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर बुधवार की रात 8:40 बजे शुरू होगी. यह तिथि अगले दिन 17 अक्टूबर को शाम 4:55 बजे तक मान्य रहेगी. ऐसे में शरद पूर्णिमा का पर्व 16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार को मनाया जाएगा. वहीं, 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय शाम में 05:5 बजे पर होगा. शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की किरणों में खीर रखते हैं. इस साल शरद पूर्णिमा पर खीर रखने का समय रात में 08:40 बजे से है. इस समय से शरद पूर्णिमा का चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर अपनी किरणों को पूरे संसार में फैलाएगा.

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Tags: Astrology, Dharma Aastha, Lord Shiva, Religion

FIRST PUBLISHED : October 15, 2024, 10:46 IST News18 India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें

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