01
अशोक कुमार मल्टी टैलेंटेड थे. अभिनेता ही नहीं बल्कि ज्योतिष के भी अच्छे जानकार थे. हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार और पहली बार एंटी हीरो रोल प्ले करने वाले शख्स भी. फिल्मों में अचानक ही एंट्री हुई. टेक्निकल क्षेत्र में आगे बढ़ने की ललक थी लेकिन फिर एक्सिडेंटली हीरो बन गए.
02
उपन्यासकार, लेखक सआदत हसन मंटो इनके दोस्तों में शुमार थे. ' मंटो ने 'मीना बाजार' में एक जगह लिखा है, एक बोल्ड महिला अशोक कुमार को अपने घर ले गई, ताकि वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर सकें. लेकिन वह इतना दृढ़ था कि महिला को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. उसने उससे कहा, 'मैं तो बस तुम्हें परख रही थी, तुम मेरे भाई जैसे हो!'
03
फिल्मों में आकस्मिक एंट्री हुई थी. उनकी जीवनी 'दादामुनी द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ अशोक कुमार' में इसका जिक्र है. उन्हें 1936 की फिल्म 'जीवन नैया' में मुख्य भूमिका में अचानक ही कास्ट किया गया. दरअसल, मेन एक्टर लापता हो गया था.
04
इस फिल्म में देविका रानी एक्ट्रेस थीं, जो उस समय बिंदास ड्रैगन लेडी के तौर पर जानी जाती थीं. वो स्मोकिंग, ड्रिंकिंग सब करती थीं. अशोक कुमार डरते-डरते हिमांशु राय की फिल्म में काम किया जो हिट हो गई. इसके बाद 'अछूत कन्या' की जो ब्लॉकबस्टर रही.
05
इसके बाद तो जो सफर शुरू हुआ वो बहुत दिनों तक रुका ही नहीं. अगले छह दशकों में, उन्होंने 'पुलिस वाले और चोर', 'किस्मत', 'महल', 'परिणीता', 'कानून', 'गुमराह', 'चलती का नाम गाड़ी', 'आशीर्वाद', 'ममता', 'ज्वेल थीफ', 'खूबसूरत' और 'खट्टा मीठा' सहित कई फिल्मों में काम किया.
06
साल 1988 में अशोक कुमार को दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड मिला. इससे सालों पहले उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था. दादामुनी की बायोग्राफी लिखने वाले नबेंदु घोष लिखते हैं कि अशोक कुमार की दुनिया बहुत बड़ी थी- वह एक आकर्षक वक्ता, संरक्षक, होम्योपैथ, ज्योतिष, चित्रकार, भाषाविद्, कवि और सबसे बढ़कर एक वफादार दोस्त और समर्पित पति और पिता थे.
07
अशोक कुमार फैमिली मैन थे. घर परिवार से बहुत प्रेम था शायद इसलिए 1987 से जन्मदिन मनाना भी बंद कर दिया था. गहरा धक्का पहुंचा था. प्यारा छोटा भाई किशोर कुमार दुनिया से विदा हो गया था. दुख तो इस बात का था कि उनके पिता की मौत भी उनके बर्थडे के दिन 13 अक्टूबर को हुई थी. दादा मुनी इस गम के साथ 10 दिसंबर 2001 को दुनिया से विदा हो गए.