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भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने लिया था चौथा अवतार, पूजा से मिटेंगे संकट!

जब जब पृथ्वी या देव लोक में कोई भी संकट आया है तब तो भगवान श्री हरि विष्णु ने अपना एक अवतार लेकर देवलोक और पृथ्वी का कल्याण किया है. श्रीहरि विष्णु के अब तक कुल 23 अवतार हो चुके हैं. 24वां अवतार कल्कि अवतार के रूप में होगा. वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप को मारा था. ये भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में चौथा अवतार है.

भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की कथा
प्राचीन काल के समय की बात है राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था कि उसे न तो कोई मानव मार सके और न ही कोई पशु, न दिन में उसकी मृत्यु हो और न ही रात में, न घर के भीतर और न बाहर, न धरती पर और न आकाश में, न किसी अस्त्र से और न ही किसी शस्त्र से. यह वरदान प्राप्त कर उसे अहंकार हो गया कि उसे कोई नहीं मार सकता. वह स्‍वयं को ही भगवान समझने लगा एवं प्रजाजनों पर अत्याचार करने लगा. उसके अत्याचार से तीनों लोक त्रस्त हो उठे.

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हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था. उसने प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन हर प्रयास उसका बेकार गया. यहां तक कि उसने अपने ही पुत्र के प्राण लेने की भी कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद का कुछ नहीं बिगाड़ सका. एक दिन जब प्रह्लाद ने उससे कहा कि भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं तो हिरण्यकश्यप ने उसे चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सर्वत्र हैं तो इस स्तंभ में क्यों नहीं दिखते?

यह कहते हुए उसने अपने महल के उस स्तंभ पर प्रहार कर दिया, तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए. उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे महल की दहलीज पर ले आए. भगवान नृसिंह ने उसे अपनी जंघा पर लिटाकर, उसके सीने को अपने नाखूनों से चीर दिया और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की.

यह भी पढ़ें: भगवान विष्णु का पहला अवतार कौन सा है? जल प्रलय से बचाने के लिए बने तारणहार, पढ़ें पौराणिक कथा

भगवान नृसिंह ने जिस स्थान पर हिरण्यकश्यप का वध किया, वह न तो घर के भीतर था न बाहर. उस समय गोधूलि बेला थी यानी न दिन था और न रात. नृसिंह न पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु. हिरण्यकश्यप का वध करते समय उन्होंने उसे अपनी जांघ पर लिटाया था, इसलिए वह न धरती पर था और न आकाश में था. उन्होंने अपने नाखून से उसका वध किया. इस तरह उन्होंने न तो अस्त्र का प्रयोग और न ही शस्त्र का. इसी दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।

संकटमोचन नृसिंह मंत्र :-
ध्यायेन्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।

अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।

यह भी पढ़ें: भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कौन सा है? समुद्र मंथन से जुड़ी है घटना

अगर आप कई संकटों से घिरे हुए हैं या संकटों का सामना कर रहे हैं तो भगवान विष्णु या श्री नृसिंह प्रतिमा की पूजा करके उपरोक्त संकटमोचन नृसिंह मंत्र का स्मरण करें. आपको समस्त संकटों से आसानी से छुटकारा मिल जाएगा.

Tags: Dharma Aastha, Lord vishnu, Religion

FIRST PUBLISHED : September 10, 2024, 09:01 IST News18 India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें

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