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नवरात्रि में ना करें ये काम, नहीं तो मां दुर्गा के कोप का होंगे शिकार! जानें

महिलाओं को पूज्यनीय माने जाने की कई वजहें हैं: नारी को ‘नर’ की महिमा, गरिमा, ममता की मूरत, अन्नपूर्णा, कोमल भाषा, निर्मल मन और स्वच्छ हृदय माना जाता है.नारी को माँ, बहन, पुत्री, पुत्र-वधू, और पत्नी के रूप में पूजा जाता है. नारी को जल की तरह माना जाता है, जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है. नारी को सूत की तरह माना जाता है, जो बिना किसी चाह के, बिना किसी कामना के, बिना किसी पहचान के, अपना सर्वस्व खो कर भी किसी के जान-पहचान की मोहताज नहीं होती. गायत्री की उपासना से नारी मात्र के प्रति पवित्र भाव बढ़ते हैं उसके प्रति श्रेष्ठ व्यवहार करने की इच्छा स्वभावतः होती है. ऐसी भावना वाले व्यक्ति नारी सम्मान के, नारी पूजा के, प्रबल समर्थक होते हैं. यह समर्थन समाज में सुख-शान्ति एवं प्रगति के लिये नितान्त आवश्यक है. शास्त्रों में भी इसका समर्थन है-

जगदम्बम्बामयं पव्य स्त्रीमात्रमविशेषतः
नारी मात्र को जगदम्बा का स्वरूप माने.
स्त्रीणां निन्दां प्रहारथ कौटिल्तचाप्रियं वचः
आत्मनो हितमान्विच्छन्ददेवीं भक्तो विवर्जयेत्.

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अपना कल्याण चाहने, वाला माता का उपासक, स्त्रियों की निन्दा न करे, न उन्हें मारे, न उनसे छल करे, न उनका जी दुःखाये.
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,
यत्र नार्यो न पूज्यन्ते श्पशानं तन्नवै गृहम् .
जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. जहां नारी का तिरस्कार होता है, वह घर निश्चय ही श्मशान है.

गायत्री उपासक की नारी जाति के प्रति गायत्री माता की ही भावना रहती है, उन्हें वह परम पूज्य दृष्टि से देखता है ऐसी स्थिति में वासनात्मक कुविचार तो उसके पास तक नहीं फटकते-
वद्या समस्तास्तवदेविभेदाः स्त्रियः समस्तसमलाजकस्तु
त्वयेकयापूरितमम्बयैतत् कास्ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः
इस संसार में सम्पूर्ण परा अपरा विद्यायें आपका ही भेद हैं. मेरे संसार की समस्त नारियाँ आपका ही रूप हैं.

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पिता से माता अधिक उदार
भक्त की कोमल भावनाएँ तो यहाँ तक मानती हैं कि न्यायकारी पिता यदि हमारे किन्हीं अपराधों से कुपित होकर दण्ड व्यवस्था करेंगे तो माता अपनी करूणा से द्रवित होकर उस दण्ड से बचा लेंगी. बचा ही नहीं लेंगी वरन् परमपिता को धमका भी देंगी कि मेरे भक्त को दुःख क्यों देते हैं, संसार में पूर्ण निर्दोष कौन है! जब सभी दोषी हैं, जब आप सभी पर दया करते हैं, उदारता और क्षमा का व्यवहार करते हैं तो मेरे भक्तों के प्रति वैसा उदार व्यवहार क्यों न करोगे! भक्त मानता है कि जब सिफरिस पर पिता को झुकना ही पड़ेगा.

विश्वनारी की पवित्र आराधना
संसार में सब से अधिक प्रेम- सम्बन्ध का अद्वितीय उदाहरण माता है. माता अपने बालक को जितना प्रेम करती है उतना और कोई सम्बन्धी नहीं कर सकता. यौवन के उफान काल में पति- पत्नी में भी अधिक प्रेम देखा जाता है पर वह वास्तविक दृष्टि से माता के प्रेम की तुलना में बहुत ही हल्का और उथला बैठता है. पति- पत्नी का प्रेम, आदान- प्रदान एक दूसरे के मनः संतोष एवं प्रति फल के ऊपर निर्भर रहता है. उस में कमी या विघ्न हो तो वह प्रेम विरोध के रूप में परिवर्तित हो जाता है, परन्तु माता का प्रेम अतीव सात्विक और उच्च- कोटि का होता है. बालक से प्रतिफल मिलना तो दूर रहा, उलटे अनेक कष्ट होते हैं, इस पर भी वह वात्सल्य की, परम सात्विक प्रेम की अमृत धारा बालक को पिलाती रहती है. कुपुत्र होने पर भी माता की भावनाएँ घटती नहीं .

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हम भगवान को प्रेम करते हैं और उनके अनन्य प्रेम का प्रतिदान प्राप्त करना चाहते हैं. तब माता के रूप में उन्हें भजना सब से अधिक उपयुक्त एवं अनुकूल बैठता है. माता का जैसा वात्सल्य अपने बालक पर होता है वैसा ही प्रेम प्रतिफल प्राप्त करने के लिए भगवान से मातृ- सम्बन्ध स्थापित करना आत्म विद्या के, मनोवैज्ञानिक रहस्यों के आधार पर अधिक उपयोगी एवं लाभदायक सिद्ध होता है. कंस, भगवान को काल के रूप में देखता था. सूरदास के कृष्ण बाल गोपाल स्वरूप थे. हमारे लिये माता का सम्बन्ध अधिक स्नेहमय हो सकता है. माता की गोदी में बालक अपने को सबसे अधिक आनंदित सुरक्षित संतुष्ट अनुभव करता है. प्रभु को माता मानकर जगज्जननी वेदमाता गायत्री के रूप में उसकी उपासना करें, तो उसकी प्रतिक्रिया भगवान की ओर से भी वैसे ही वात्सल्य मय होगी जैसी कि माता की अपने बच्चे के प्रति होती है.

नारी- शक्ति पुरुष के लिए सब प्रकार आदरणीय, पूजनीय एवं पोषणीय है. पुत्री के रूप में, बहिन के रूप में, माता के रूप में, वह स्नेह करने योग्य, मैत्री करने योग्य एवं गुरूवत् पूजन करने योग्य है. पुरुष के शुष्क अन्तर में अमृत सिंचन यदि नारी द्वारा नहीं हो पाता, तो वैज्ञानिक बतलाते हैं कि वह बड़ा रूखा, कर्कश, क्रूर, निराश, संकीर्ण एवं अविकसित रह जाता है. वर्षा से जैसे पृथ्वी का हृदय हर्षित होता है और उसकी प्रसन्नता हरियाली एवं पुष्प- पल्लव के रूप में फूट पड़ती है. पुरूष भी नारी की स्नेह- वर्षा से इसी प्रकार सिंचन प्राप्त करके अपनी शक्तियों का विकास करता है, परन्तु एक भारी विघ्न इस मार्ग में वासना का है जो अमृत को विष बना देता है. दुराचार, कुदृष्टि एवं वासना का सम्मिश्रण हो जाने से नर- नारी के सान्निध्य से प्राप्त होने वाले अमृत फल, बीज बन जाते हैं. इसी बुराई के कारण स्त्री- पुरुषों को अलग- अलग रहने के, सामाजिक नियम बनाये गये हैं. फलस्वरूप दोनों पक्षों को उन असाधारण लाभों से वंचित रहना पड़ता है, जो नर- नारी के पवित्र मिलन से पुत्री, बहिन और माता के रूप में सामीप्य होने से मिल सकते हैं.

श्रीरामकृष्ण परमहंस, योगी अरविन्द घोष, छत्रपति शिवाजी आदि कितने ही महापुरुष शक्ति उपासक थे. शक्ति धर्म, भारत मा प्रधान धर्म है. जन्म भूमि को हम भारत माता के रूम में पूजते हैं सभी राष्ट्रवादी भारत माता की, मातृ शक्ति की जय बोलते हैं और उसकी उपासना करते हैं. शिव से पहले शक्ति की पूजा हैं. लक्ष्मी नारायण, सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर आदि नामों को प्रथम और नर को गौण रखा गया है. माता का, पिता और गुरू से भी पहला स्थान है. इस प्रकार विश्व नारी के रूप में भगवान की पूजा करना नर पूजा की अपेक्षा अधिक उत्तम उपयोगी है. गायत्री उपासना को यही विशेषता है.

Tags: Astrology, Dharma Aastha, Dharma Culture, Dharma Granth, India Women, Indian women, Navratri Celebration, Navratri festival

FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 10:58 IST News18 India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें

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