हर महीने पीरियड्स होना और उसका दर्द बर्दाश्त करना एक महिला के लिए आसान नहीं है. लेकिन कुछ महिलाओं को पीरियड्स शुरू होने से पहले बॉडी में दर्द होने लगता है, उन्हें मूड स्विंग होते हैं. लेकिन जैसे ही पीरियड्स शुरू हो जाते हैं, सब ठीक हो जाता है. ऐसा हर महीने होता हो तो इसे प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (Premenstrual Dysphoric Disorder) कहा जाता है.
पीरियड्स शुरू होने से 2 हफ्ते पहले दिखते लक्षण
दिल्ली के सीके बिरला हॉस्पिटल में ऑब्स्ट्रेटिक्स और गायनेकोलॉजी में लीड कंसल्टेंट डॉ.तृप्ति रहेजा कहती हैं कि प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (PMDD) ओव्यूलेशन के बाद सामने दिखता है यानी पीरियड्स होने के 10 से 14 दिन पहले. दरअसल PMDD का कनेक्शन मेंस्ट्रुअल साइकिल से है. जब महिला की ओवरी में एग बनता है तो उस समय को ओव्यूलेशन कहा जाता है. यह मेंस्ट्रुअल साइकिल के बीच में बनते हैं यानी अगर किसी की यह साइकिल 28 दिन की है तो उनका ओव्यलेशन 14वें दिन होगा. कुछ महिलाओं को ओव्यूलेशन के बाद मूड स्विंग होने लगते हैं. उन्हें उदासी, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट, डिप्रेशन या एंग्जाइटी घेर लेती है. यह इसलिए होता है क्योंकि ओव्यूलेशन के बाद हॉर्मोन्स में फ्लकचुएशन हो जाता है.
शरीर में दिखते हैं बदलाव
जिन महिलाओं को प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर होता है, उनके शरीर में इसके लक्षण दिखते हैं. कुछ महिलाओं को छाती में दर्द होता है, ब्रेस्ट सख्त हो जाती हैं और ब्लोटिंग की शिकायत होने लगती है. कुछ महिलाओं को मेंस्ट्रुअल माइग्रेन की तरह तेज सिरदर्द होता है.
इस डिसऑर्डर के लक्षण मेनोपॉज के बाद खत्म हो जाते हैं (Image- Canva)
मेनोपॉज के बाद नहीं होते मूड स्विंग
जब तक महिला की मेंस्ट्रुअल साइकिल चलेगी तब तक यह डिसऑर्डर होगा लेकिन मेनोपॉज के बाद यह खत्म हो जाता है क्योंकि इसके बाद महिलाओं की ओवरी काम करना बंद कर देती है और हॉर्मोन्स का उतार-चढ़ाव होना बंद हो जाता है. प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (PMDD) के अधिकतर मामले 20 से 30 साल की उम्र में देखने को मिलते हैं.
पहले से मेंटल डिसऑर्डर हो
डॉ.तृप्ति रहेजा कहती हैं कि जिन महिलाओं को पहले डिप्रेशन हो, किसी तरह का स्ट्रेस हो या कोई मेंटल डिसऑर्डर हो तो उनमें प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (PMDD) होने की आशंका ज्यादा रहती है.
ओवरइटिंग करने लगती हैं महिलाएं
प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर में महिलाओं की भूख में भी बदलाव होता है. वह बिंज ईटिंग या ओवर ईटिंग का शिकार हो जाती हैं. बिना भूख लगे भी उन्हें कुछ ना कुछ खाने को चाहिए होता है. वह तब तक खाती हैं जब तक उन्हें बेचैनी होती है. दरअसल यह एक मेंटल डिसऑर्डर है इसलिए इसमें इंसान का दिमाग अशांत रहता है इसलिए व्यक्ति लगातार खाता रहता है. ऐसे में महिलाओं का वजन भी तेजी से बढ़ने लगता है.
हैप्पी हॉर्मोन्स की कमी
हार्वर्ड हेल्थ के अनुसार प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर में हॉर्मोन्स में एब्नॉर्मल तरीके से बदलाव होते हैं जिससे शरीर में सेरोटोनिन नाम के हॉर्मोन की कमी होने लगती है. यह हॉर्मोन हैप्पी हार्मोन कहलाता है जो मूड और बिहेवियर को नियंत्रित करता है. यह दिमाग और आंतों में रिलीज होता है. इसकी कमी से ही इंसान उदास रहने लगता है और डिप्रेशन-एंग्जाइटी का शिकार होने लगता है.
PMDD का प्रेग्नेंसी पर कोई असर नहीं पड़ता (Image- Canva)
बर्थ कंट्रोल पिल्स से होता इलाज
इस डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए मरीज को एंटीडिप्रेसेंट दिए जाते हैं और उनकी काउंसलिंग भी होती है. इसके अलावा बर्थ कंट्रोल पिल्स भी दी जाती हैं. दरअसल महिला की जो नेचुरल मेंस्ट्रुअल साइकिल होती है, उसमें बहुत ज्यादा हॉर्मोन्स का उतार-चढ़ाव हो रहा होता है जिससे उन्हें तकलीफ होती हैं. ऐसे में इन पिल्स से उनका ओव्यूलेशन बंद हो जाता है. क्योंकि यह डिसऑर्डर ओवरी से एग रिलीज होने के बाद ही होता है. जब यह प्रक्रिया रूक जाती है तो हॉर्मोन्स स्टेबल हो जाते हैं और महिलाओं को PMDD परेशान नहीं करता.
डाइट और लाइफस्टाइल पर ध्यान देने की जरूरत
जिन महिलाओं को प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर होता है, उन्हें अपना लाइफस्टाइल बदलने को कहा जाता है. ऐसे मरीज को हर रोज एक्सरसाइज करने के साथ स्ट्रेस मैनेजमेंट पर ध्यान देने की जरूरत होती है. महिलाओं को मेडिटेशन या कोई भी अपनी पसंद की हॉबी करने को कहा जाता है जिससे उनका स्ट्रेस दूर हो. इसके अलावा डाइट में कैल्शियम और मैग्निशियम को शामिल किया जाता है. ऐसी महिलाओं को नींद भी पूरी लेनी चाहिए.
भारत में नहीं होती इस बीमारी पर बात
अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपे सर्वे में पाया गया कि जिन महिलाओं को पहले से प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर है, उनमें से उनकी 70% बेटियों में इस डिसऑर्डर के लक्षण मिले. भारत के अलग-अलग इलाकों में इस डिसऑर्डर की शिकार महिलाएं 3.7% से 65.7% के बीच मिलीं. सर्वे में इसके पीछे का कारण मेंस्ट्रुअल का टैबू माना गया. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार भारत में अब भी पीरियड्स को लेकर खुलकर बात नहीं होती. अगर कोई लड़की इस डिसऑर्डर का शिकार हो तो वह अपने घरवालों को इस बारे में नहीं पता पाती इसलिए उनका इलाज समय रहते नहीं हो पाता.
Tags: Female Health, Health, Mental diseases
FIRST PUBLISHED : October 3, 2024, 13:19 ISTNews18 India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें